रविवार, 26 अप्रैल 2020

गायत्री मंत्र Gaytri Mantra


गायत्री देवी हिन्दू धर्मं की एक देवी है जिनका वर्णन महर्षि विश्वामित्र द्वारा किया गया है, अपितु यह ब्रम्ह देव द्वारा निर्मित है, इनका मूलरूप श्री सावित्री देवी जो एक कठोर परन्तु सर्व सिद्धि दात्री देवी मानी गयी है|



गायत्री देवी की साधना के हेतु गायत्री मंत्र, यह मन्त्र सर्वप्रथम ऋग्वेद में उद्धत हुआ था, का जप अनुष्ठान किया जाता है, जो निम्नवत है:-


        ॐ भूर्भव: स्व:                      “Om Bhoor Bhuvah Svah
        तत्सवितुर्वरेण्यम्                      Tat Savitur Varenyam
        भर्गो देवस्य धीमहि                   Bhargo Devsy Dheemahi
        धियो यो न: प्रचोदयात्              Dhiyo Yo Nah Prachodayaat”





गायत्री मंत्र का अर्थ:-
सूर्य देव की स्तुति में इस मंत्र का अर्थ निम्नवत है:-
      उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्त:करण में धारण करे, वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे|

गायत्री मन्त्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या:-
          प्रणव
भूर          मनुष्य को प्राण प्रदान करने वाला
भुव:         दुखो का नाश करने वाला
स्व:         सुख प्रदान करने वाला
तत          वह
सवितुर       सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यम्      सबसे उत्तम
भर्गो         कर्मो का उद्धार करने वाला
देवस्य       प्रभु
धीमहि       आत्म चिंतन के योग्य
धियो        बुद्धि
यो          जो
न:          हमारी
प्रचो-द्यात    हमें शक्ति दें (प्रार्थना)

      गायत्री मन्त्र जाप ऐसा उपाय है जिससे किसी भी प्रकार की समस्या को दूर किया जा सकता है, मनचाही वस्तु की प्राप्ति एवं इच्छा पूर्ति के लिए इस मंत्र से अच्छा कोई और मन्त्र नही है| सभी मंत्रो में गायत्री मन्त्र सबसे दिव्य और चमत्कारी है|


      शास्त्रों के अनुसार गायत्री मन्त्र को वेदों में सर्वश्रेष्ठ मन्त्र बताया गया है| इस मन्त्र जप के लिए तीन  समय बताया गया है जिसमे प्रथम, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मन्त्र जप शुरू किया जाना चाहिए, जप को सूर्योदय पश्चात् तक करना चाहिए| द्वितीय समय दोपहर मध्यान्ह का होता है और तीसरा समय शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले जप शुरुआत कर सूर्यास्त के देर तक करना चाहिए|

लाभ:-
      उत्साह और सकारात्मक उर्जा में वृद्धि, त्वचा में चमक, आत्मविश्वास में वृद्धि, तामसिकता से घृणा, परमार्थ में रूचि, आशिर्वाद देने में शक्ति, नेत्रों में तेज, पूर्वाभास मे वृद्धि, क्रोध का शांत होना और ज्ञान में वृद्धि होती है|

अक्षय तृतीया Akshaya Tritiya 2020






अक्षय तृतीया के त्योहार को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) को हिन्दू धर्म में अत्यंत पावन, मंगलकारी और कल्याणकारी माना गया है.  मान्यता है कि  अक्षय तृतीया के दिन  सौभाग्य  और शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता. यानी कि इस दिन जो भी काम किया जाए उसका फल कई गुना मिलता है और वह कभी घटता भी नहीं है. यही वजह है कि इस दिन जाप, यज्ञ, पितृ-तर्पण और दान-पुन्य  किया जाता है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन शुभ लाभ और सफलता मिलती है. इस दिन सोने या उससे बने आभूषण खरीदने की भी परंपरा है. कहते हैं कि इस दिन सोना खरीदने से सुख-समृद्धि आती है तथा भविष्य में धन की प्राप्ति भी होती हैहिंदू पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया को बहुत ही शुभ और पवित्र तिथि मानी गई है। इस बार यह 26 अप्रैल को मनाई जाएगी। यह एक ऐसी तिथि है जिसमें किसी शुभ कार्य को बिना पंचांग देखे किया जा सकता है। अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना गया है।


अक्षय तृतीया......
1. अक्षय तृतीया पर दान और पूजा करने से इसका फल कई गुना होने के साथ अक्षय भी रहता  है।
2. अक्षय तृतीया पर इस वर्ष सूर्य, चंद्रमा और मंगल अपनी उच्च राशि में रहेंगे जबकि शुक्र और शनि स्वयं की राशि में रहने से शुभ संयोग बनेगा।
3. अक्षय तृतीया पर सोने और चांदी से बने हुए आभूषण की खरीदारी को शुभ माना जाता है।
4. अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु संग माता लक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा की जाती है।
5. इस दिन दान करने का महत्व काफी होता है। अक्षय तृतीया पर 14 तरह के दान करने से सभी तरह के सुख और संपन्नता की प्राप्ति होती है।





अक्षय तृतीया मुहूर्त कब से कब तक
Akshaya Tritiya 2020 Shubh Muhurat Timing

इस वर्ष अक्षय-तृतीया 26 अप्रैल दिन रविवार को मान्य हो रही है। 26 तारीख़ को दिन में 11 बजकर 12 मिनट तक तृतीया रहेगी। रोहिणी नक्षत्र और शोभन योग की अक्षय तृतीया सर्वोत्तम मानी गई है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से धन संपदा में अक्षय वृद्धि होती है। अक्षय तृतीया के दिन हरीहर अर्थात् भगवान विष्णु एवं शिव की संयुक्त पूजा करना भी फलप्रद है। इसका विधान यह है कि सर्वदेव स्वरूप श्री शालिग्राम जी का रुद्राष्टध्यायी के द्वितीय एवं पंचम अध्याय का पाठ करते हुए पंचामृत से अभिषेक करें। ऐसे आराधक इस लोक में सुख प्राप्त कर हरीहर अर्थात् विष्णु-शिव लोक प्राप्त करते हैं।

अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त – 5:48 से 12:19
सोना खरीदने का शुभ समय – 5:48 से 13:22

तृतीया तिथि प्रारंभ –11:51 (25 अप्रैल 2020)
तृतीया तिथि समाप्ति – 13:22 (26 अप्रैल 2020)



अक्षय तृतीया पर महालक्ष्मी पूजा मंत्र
Akshaya Tritiya 2020 Puja Mantra

'ॐ नमो भाग्य लक्ष्म्यै च विद्महे अष्ट लक्ष्म्यै च धीमहि तन्नौ लक्ष्मी प्रचोदयात्।।'


अक्षय तृतीया की पूजन विधि

अक्षय तृतीया के दिन  भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन विष्णुजी को चावल चढ़ाना शुभ होता है. विष्णु और लक्ष्मी का पूजन कर उन्हें तुलसी के पत्तों के साथ भोजन अर्पित किया जाता है. वहीं, खेती करने वाले लोग इस दिन भगवान को इमली चढ़ाते हैं. मान्यता हैं कि ऐसा करने से साल भर अच्छी फसल होती है.